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पराली जलाने की समस्या से कैसे निपटा जाए?

पराली जलाने की समस्या से कैसे निपटा जाए?

हमारे देश में किसान फसलों के बचे भागों यानी अवशेषों को कचरा समझ कर खेत में ही जला देते हैं. इस कचरे को पराली कहा जाता है. इसे खेत में जलाने से ना केवल प्रदूषण फैलता है बल्कि खेत को भी काफी नुकसान होता है. ऐसा करने से खेत के लाभदायी सूक्ष्मजीव मर जाते हैं और खेत की मिट्टी इन बचे भागों में पाए जाने वाले महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों से वंचित रह जाती है. किसानों का तर्क है कि धान के बाद उन्हें खेत में गेहूं की बुआई करनी होती है और धान की पराली का कोई समाधान नहीं होने के कारण उन्हें इसे जलाना पड़ता है. पराली जलाने पर कानूनी रोक लगाने के बावजूद, सही विकल्प ना होने की वजह से पराली जलाया जाना कम नहीं हुआ है. खरीफ फसलों (मुख्यतः धान) को हाथों से काटने और फसल अवशेष का पर्यावरणीय दृष्टि से सुरक्षित तरीके से निपटान करने के काम में ना केवल ज्यादा समय लगता है बल्कि श्रम लागत भी अधिक हो जाती है. इससे कृषि का लागत मूल्य काफी बढ़ जाता है और किसान को घाटा होता है. इसलिए इस स्थिति से बचने के लिए और रबी की फसल की सही समय पर बुआई के लिए किसान अपने फसल के अवशेष को जलाना बेहतर समझते हैं. अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) के एक अध्ययन के मुताबिक उत्तर भारत में जलने वाली पराली की वजह से देश को हर साल लगभग दो लाख करोड़ रुपए का नुकसान होता है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सर्दियों में बढ़ने वाले दम घोंटू प्रदूषण की एक बड़ी वजह पड़ोसी राज्यों पंजाब और हरियाणा में पराली का जलाया जाना है. अकेले पंजाब में ही अनुमानित तौर पर 44 से 51 मिलियन मेट्रिक टन पराली जलायी जाती है. इससे होने वाला प्रदूषण हवाओं के साथ दिल्ली-एनसीआर में पहुंच जाता है. अध्ययन के मुताबिक केवल धान के अवशेष को जलाने से ही 2015 में भारत में 66,200 मौतें हुईं. इतना ही नहीं, अवशेष जलने से मिट्टी की उर्वरता पर भी बुरा असर पड़ा. साथ ही, इससे पैदा होने वाली ग्रीन हाउस गैस की वजह से पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है.

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पराली जलाने के बढ़ते मामलों की वजह से विषैली हुई कई शहरों की हवा

पराली जलाने के बढ़ते मामलों की वजह से विषैली हुई कई शहरों की हवा

किसान भाइयों जैसा कि आप जानते हैं वर्तमान में धान की कटाई का समय चल रहा है। दरअसल, प्रति वर्ष पंजाब एवं हरियाणा की सरकारें किसानों पर कड़ाई करने व पराली जलाने से रोकने की बात तो करती हैं। परंतु, वास्तविकता में किसान निरंतर पराली जलाने में जुटे हुए हैं। इसी कारण से पराली जलाने से जो प्रदूषण फैल रहा है, उसके कारण दिल्ली-एनसीआर का AQI यानी वायु गुणवत्ता सूचकाँक निरंतर खतरनाक स्तर की तरफ बढ़ रहा है। पंजाब और हरियाणा राज्य से विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी पराली का खतरा बढ़ना शुरू हो गया है। बतादें, दोनों राज्यों की सरकार की सख्ती के पश्चात भी किसान खुले मैदानों में पराली जलाते दिख रहे हैं। पराली जलने की वजह से उठने वाला धुंआ पंजाब, हरियाणा सहित दिल्ली-एनसीआर के लोगों की सांसों के लिए घातक साबित हो रहा है। दिल्ली-एनसीआर में CPCB द्वारा की गई मॉनिटरिंग में औसत AQI 263 रिपोर्ट हुआ है। इसकी वजह से लोगों के ऊपर गंभीर बीमारियों का खतरा मंडरा रहा है। पंजाब और हरियाणा राज्यों में निरंतर पराली को आग लगाई जा रही है। जैसे-जैसे धान की कटाई का सीजन आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे पराली जलाने के मामले भी निरंतरता से बढ़ रहे हैं। पराली में आग लगाने से जो धुआं और प्रदूषण उत्पन्न हो रहा है, उसकी वजह से दिल्ली-एनसीआर सहित हरियाणा के भी बहुत सारे शहरों का AQI काफी खराब स्तर पर पहुंच चुका है।

पंजाब में बेखौफ पराली को आग के हवाले किया जा रहा है

पंजाब राज्य के अंदर भले ही पराली जलाने के मामले कम होने का दावा किया जा रहा हो, परंतु खुलेआम पराली जलाने का सिलसिला भी निरंतर जारी है। चंडीगढ़ के आसपास डेराबस्सी में हाईवे के किनारे ही सरेआम पराली जलती नजर आई। स्थिति आज यह है, कि यदि आप पंजाब एवं हरियाणा में किसी भी नेशनल हाईवे से गुजरते हैं, तो सड़क के किनारे जले हुए काले खेत नजर आऐंगे। जहां पर पराली पूर्णतय खाक में बदली नजर आएगी। किसान चालाकी से अपने खेत में पराली को आग लगा देते हैं और उसके पश्चात अपने खेतों से नौ दो ग्यारह हो जाते हैं, जिससे कि उन पर कोई कानूनी कार्यवाही ना हो सके।

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हरियाणा में जागरूक किसान पराली का उचित प्रबंधन कर रहे हैं

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ऐसे किसान भी हैं, जो पराली को आग के हवाले ना करके उसका प्रबंधन करने में विश्वास रखते हैं। पंचकूला के नग्गल गांव में किसान सुपर सीडर मशीन के माध्यम से पराली को खेतों में ही खाद की भांति उपयोग करने एवं सीधे गेहूं के बीज की बुवाई करते नजर आए। इन किसानों का कहना है, कि जो किसान महंगी मशीनें खरीद सकते हैं, वो तो पराली का प्रबंधन कर लेता है। परंतु, लघु व सीमांत किसानों के पास पराली को आग लगाने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं है।

किसानों को सरकार से क्या शिकायत है

पंचकूला के मनकइया गांव में कुछ किसान पारंपरिक ढ़ंग से धान की फसल की कटाई के उपरांत पराली के ढेर बना रहे हैं। परंतु, उन्हें भी शिकायत इस बात की है, कि वो मजदूर लगाकर पराली को जलाने की बजाय उसका प्रबंधन कर रहे हैं। परंतु, सरकार की ओर से उन्हें ना तो कोई सहायता मिली है और ना ही किसी प्रकार का कोई अनुदान दिया गया है। उन्हें अपने स्वयं के खर्चे पर ही पराली का प्रबंधन करना पड़ रहा है।

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पहले से काफी मामले घटे हैं

पंजाब में विगत साल के मुकाबले में इस वर्ष पराली जलाने के मामलों में गिरावट आई है। राज्य में अब तक 1764 जगहों पर पराली जलाने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। ये आंकड़े विगत 2 वर्षों में सबसे कम हैं। इसी समयावधि में अब तक 2021 में 4327 और 2022 में 3114 मामले दर्ज किए गए थे। अगर हम हरियाणा राज्य की बात करें तो इस सीजन में यहां पराली जलाने के 714 मामले सामने आ चुके हैं। हालांकि, विगत वर्ष की अपेक्षा में देखा जाए, तो विगत वर्ष अब तक 893 मामले सामने आए थे। यदि हरियाणा-पंजाब राज्यों की सरकार किसानों को पूरी तरह जागरूक करके उन्हें संसाधन मुहैय्या कराती है, तो पराली की चुनौती से छुटकारा मिल सकता है। बतादें, कि हरियाणा के कुछ शहरों का रिकॉर्ड किया गया AQI भयावह है। दरअसल, करनाल-243, रोहतक-182, जींद-155, फरीदाबाद-322, बहादुरगढ़-284, कैथल-269, कुरुक्षेत्र-256 और गुरुग्राम में 255 वायु गुणवत्ता सूचकाँक दर्ज किया गया।
किसान भाई पराली को जलाने की जगह यह उपाय करें

किसान भाई पराली को जलाने की जगह यह उपाय करें

​किसान भाई पराली को आग लगाने की वजाय यहां दिए गए तरीकों को अपना सकते हैं। पराली जलाने से होने वाला प्रदूषण रुकने के साथ-साथ किसान भाइयों को लाभ भी मिलेगा। दिल्ली एनसीआर समेत कई शहरों में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ गया है। प्रति वर्ष इन दिनों प्रदूषण का स्तर बढ़ने के पीछे की एक वजह पराली भी है। लेकिन, किसान भाई पराली जलाने के स्थान पर उसका क्या कर सकते हैं, आइए इसके बारे जानते हैं। हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पंजाब समेत विभिन्न राज्यों के किसान धान के उपरांत गेहूं की खेती करते हैं। इसके अतिरिक्त वह बाकी फसलों की खेती भी करते हैं, जिसके लिए खेत तैयार करने की काफी आवश्यकता होती है। इसके चलते किसान फसल काटने के पश्चात खेतों में बचे हुए धान के डंठल अथवा पराली को जलाते हैं। कृषक भाई पराली को जलाकर फसल के अवशेषों को स्वच्छ करने और खेतों को पुनः बुवाई के लिए तैयार करते हैं।


 

मल्चर मशीन क्या होती है

सीटू प्रबंधन में बहुत सी मशीन हैं, जिनमें से मल्चर सबसे पहले है। धान की फसल के अवशेष को नियंत्रित करने के अलावा मल्चर भी एक प्रभावी कृषि उपकरण है। यह मशीन अपने ब्लेड से फसल के अवशेष को ट्रैक्टर की सहायता से छोटे-छोटे टुकड़ों में काटती है। धान की फसल के अवशेषों का प्रबंधन भी इससे काफी सहजता से होता है। इसका उपयोग करने के पश्चात आग नहीं लगानी चाहिए। धान के पुआल को मृदा में मिलाकर मिट्टी को संभालना एवं उर्वरकता को बढ़ाना एक प्रभावी और कामगर उपाय है। जैसे - पुआल को बहुत सारे जुताई उपकरणों का उपयोग करके मिट्टी में जोतने से इसका टूटना तीव्र होता है। साथ ही, मिट्टी की संरचना भी काफी शानदार होती है।

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पराली प्रबंधन के लिए सरकार अनुदान प्रदान करती है

धान की पराली के निपटारे की बजाय अन्य दूसरे विकल्पों का विचार भी किया जा सकता है। इसे पशुओं के चारे के तौर पर उपयोग कर सकते हैं। विशेष रूप से जब यह काटा अथवा संसाधित किया जाता है। बहुत सी सरकारें पुआल प्रबंधन को प्रोत्साहन देने के लिए काफी नियम बना रही हैं। पर्यावरण-अनुकूल तरीकों को अपनाने अथवा मशीन खरीदने के लिए अनुदान प्रदान कर रही हैं।

जानें आने वाले दिनों में मौसम कैसा रहेगा, कहाँ पड़ेगी बर्फ और कहाँ होगी बारिश

जानें आने वाले दिनों में मौसम कैसा रहेगा, कहाँ पड़ेगी बर्फ और कहाँ होगी बारिश

मौसम विभाग के मुताबिक, आने वाले दिनों में बहुत सारे राज्यों में बारिश होने की संभावना हैं। IMD ने कहना है, कि गुजरात, दक्षिण पश्चिम मध्य प्रदेश, दक्षिण राजस्थान, मध्य महाराष्ट्र और उत्तरी कोंकण में 24 से 27 नवंबर के मध्य बरसात होने की संभावना हैं। आइए आपको बताते हैं की मौसम का मिजाज क्या कहता है।  भारत में मौसम का रवैय्या इन दिनों काफी बदला-बदला सा दिखाई दे रहा है। उत्तर भारत में ठंड का आगमन हो चुका है। विगत कुछ दिनों से ठंड में काफी तेजी से इजाफा हुआ है। दिल्ली सहित बहुत सारे राज्यों में तापमान आहिस्ता - आहिस्ता कम होने लगा है। हालांकि, दक्षिण भारत सहित पूर्वोत्तर के विभिन्न इलाकों में आज भी भारी बारिश का दौर जारी है। साथ ही, आने वाले दिनों में मौसम में एक बड़ी तब्दीली देखने को मिल सकती है। मौसम विभाग के मुताबिक, एक वेस्टर्न डिस्टर्बेंस उत्तर पश्चिम और पश्चिम भारत को 25 नवंबर से प्रभावित करने जा रहा है, जिसके चलते मौसम में परिवर्तन देखने को मिलेगा। इस परिवर्तन के चलते दक्षिण पश्चिम, मध्य प्रदेश, दक्षिण राजस्थान, मध्य महाराष्ट्र, उत्तरी कोंकण और गुजरात में 24 से 27 नवंबर के बीच बारिश होने की आशंका है। 

वर्षा का दौर किन इलाकों में जारी रहेगा 

साथ ही, पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र एवं उत्तर पश्चिम के मैदानी क्षेत्रों में भी 27 और 28 नवंबर को हल्की वर्षा दर्ज की जा सकती है। इसके अतिरिक्त, मौसम विभाग ने कहा है, कि आगामी दो से तीन दिनों तक दक्षिण भारत में मूसलाधार बारिश का दौर जारी रहेगा। इस दौरान लक्षद्वीप, दक्षिणी कर्नाटक, तटीय आंध्र प्रदेश, तटीय ओडिशा और दक्षिणी छत्तीसगढ़, तमिलनाडु और केरल में हल्की से मध्यम वर्षा के साथ कुछ जगहों पर भारी वर्षा होने की आशंका है। मौसम विभाग ने कहा है, कि इस दौरान पश्चिमी पहाड़ी इलाकों पर भी हल्की वर्षा के आसार हैं, जिससे ठंड में और बढ़ोतरी होगी। 

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दिल्ली में प्रदूषण का स्तर पुनः बढ़ा   

दिल्ली में प्रदूषण का स्तर कम होने की जगह निरंतर बढ़ रहा है। दिवाली के पश्चात बढ़े प्रदूषण से दिल्लीवासियों को कुछ सीमा तक सहूलियत अवश्य मिली थी। परंतु, अब एक बार पुनः प्रदूषण का स्तर खराब होता दिखाई दे रहा है। दिल्ली में बुधवार को वायु गुणवत्ता की हालत काफी खराब रही है। शहर का एक्यूआई बुधवार को 394 पर दर्ज किया गया। वहीं, एक दिन पूर्व मंगलवार को यह 365 था। प्रदूषण के साथ-साथ फिलहाल दिल्ली में कोहरे का कहर भी देखने को मिल सकता है। मौसम विभाग के अनुसार, दिल्ली में इस संपूर्ण सप्ताह कोहरा देखने को मिलेगा। इसके साथ-साथ, पहाड़ों पर होने वाली वर्षा के चलते मैदानी क्षेत्रों में तेज हवाएं चल सकती हैं।
NGT ने पराली जलाने के चलते बढ़ते प्रदूषण को लेकर पंजाब-हरियाणा सरकार से नाखुशी जताई

NGT ने पराली जलाने के चलते बढ़ते प्रदूषण को लेकर पंजाब-हरियाणा सरकार से नाखुशी जताई

एनजीटी ने इससे पूर्व प्रदूषण एवं पराली जलाने के बढ़ते मामलों को लेकर पंजाब सरकार की खिंचाई की थी। एनजीटी ने पराली जलाने पर तत्काल रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने में विफल रहने के लिए राज्य सरकार की आलोचना भी की थी। 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पंजाब तथा हरियाणा सरकार को 2024 में पराली जलाने के मामलों को कम करने के लिए एक कार्य योजना तैयार करने का निर्देश दिया। ट्रिब्यूनल ने टिप्पणी में कहा, कि 'आप इसके विषय में भूल जाएंगे तथा अगले वर्ष पंजाब में पुनः पराली जलाई जाएगी।' एनजीटी ने राज्यों को आगामी वर्ष के लिए विभिन्न निवारक कदमों समेत एक समयबद्ध कार्य योजना (एक्शन प्लान) तैयार करने का निर्देश दिया है। दिल्ली प्रदूषण के संबंध में, ट्रिब्यूनल ने दिल्ली में सिर्फ GRAP को लागू करने एवं रद्द करने के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग को फटकार लगा दी। एनजीटी ने कहा है, कि सीएक्यूएम अपने आधार पर कार्य कर रहा है। CAQM का क्या काम है? वे बस GRAP को रद्द करते हैं और लागू करते हैं। उनके 90% फीसद सदस्य बैठकों में शामिल नहीं होते हैं।'

एनजीटी ने पराली जलाने के बढ़ते मामलों को लेकर नाराजगी जाहिर की है 

एनजीटी ने इससे पूर्व प्रदूषण एवं पराली जलाने के बढ़ते मामलों को लेकर पंजाब सरकार से सवाल पूछा था। एनजीटी ने पराली जलाने पर तत्काल रोक लगाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने में विफल रहने के लिए राज्य सरकार की आलोचना भी की थी। हरित न्यायाधिकरण मतलब कि NGT ने पराली जलाने पर प्रतिबंध नहीं लगाने के लिए पंजाब सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों पर नाखुशी व्यक्त की थी। 

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एनजीटी ने पराली जलाने को लेकर प्रशासन को जिम्मेदार बताया 

एनजीटी ने इसको "प्रशासन की पूर्ण विफलता" बताते हुए कहा किजब मामला उठाया गया था तब पराली जलाने की लगभग 600 घटनाएं दर्ज की गई थीं और अब यह संख्या 33,000 है, इस तथ्य के बावजूद कि एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर विचार कर रहे हैं और आप कह रहे हैं कि आप प्रयास कर रहे हैं।एनजीटी ने कहा था कियह आपके प्रशासन की पूर्ण विफलता है। पूरा प्रशासन काम पर है और फिर भी आप विफल रहे हैं।''

पंजाब के वकीलों से एनजीटी ने सवाल किया था 

एनजीटी ने पंजाब सरकार को "उल्लंघनकर्ताओं पर मुकदमा चलाने में सेलेक्टिव रोल" के लिए भी बुलाया था। क्योंकि पंजाब के वकील ने कहा था कि उसने 1,500 में से एक ही दिन में फसल जलाने के लिए महज 829 के विरुद्ध एफआईआर दर्ज की थी।यह एक दिन की घटना का तकरीबन एक-चौथाई है। इस पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पंजाब के वकील से कहा कि सभी के विरुद्ध समान कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है। दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के स्तर में वृद्धि के बीच, सुप्रीम कोर्ट ने 7 नवंबर को हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि फसल अवशेष जलाना "तत्काल" रोका जाए, यह कहते हुए कि वह प्रदूषण के कारण "लोगों को मरने" नहीं दे सकता।